Indian folk arts establish the ethos of life and the foundation of folk culture. The culture and civilization of Nimar can be seen in folklore, folklore, folk paintings. The inclusion of symbols in the making of various Teej-festivals folk paintings shows the presence in their sociality. Parallel development of a beautiful beautiful painting tradition of land ornamentation with paintings made on the occasion of rituals. The design of geometrical form is reflected in land ornamentation. Jyoti, Nag, Kuldevi, Dussehra, Bhayuduj, Sureti, Ahoi Ashtami, Sanjhafuli, Diwali Hatay, Manna, Satiya, Check Kalash etc. are prominent in the mural paintings. The basic feeling of folk paintings is graphical. For illustration, the primary colors are red, yellow, blue, green, black and white, etc. The artist prepares the traditional method. There is no definite rule of color legislation in folk paintings and styles of making paintings are like stereotypes. Every activity in life tries to express in pictures the folk artist. Due to the influence of modern modernity, activities related to the picture tradition are now getting reduced. There is a need to save these colors so that this art flourishes.
 भारतीय लोक कलाऐं जीवन के आचार-विचार तथा लोक संस्कृति की नींव स्थापित करती है। निमाड़ की संस्कृति व सभ्यता, को लोकगीत, लोककथा, लोकचित्रों में देखा जा सकता है। विभिन्न तीज-त्यौहारों लोक चित्रों के बनाने में प्रतीकों का समावेष उनकी सामाजिकता में उपस्थिती को दर्षाते है। अनुष्ठानों के अवसर पर बनाये जाने वाले चित्रों के साथ भूमि अलंकरण की एक मांगलिक सुन्दर चित्र परम्परा का समानान्तर विकास हुआ है। भूमि अलंकरण में ज्यामितीय रूप के आकल्पन की प्रमुखता दर्षित होती है। भित्ती चित्रों में जीरोती, नाग, कुलदेवी, दषहरा, भाईदूज, सुरेती, अहोई अष्टमी, सांझाफूली,दीवाली हाते, मांड़ना, सातिया, चैक कलष आदि प्रमुख है। लोक चित्रों की मूल भावना रेखांकन की होती है। चित्रण के लिये लाल, पीला, नीला, हरा, काला और सफेद आंिद प्राथमिक रंगों को कलाकार पारम्परिक विधि से तैयार करते है। लोक चित्रों में रंग विधान का कोई निष्चित नियम नहीं होता है व चित्रों को बनाने की शैलियाॅं रूढ़ि की तरह होती है। जीवन की प्रत्येक गतिविधि को चित्रों में व्यक्त करने की कोषिष लोकचित्र कलाकार करता है। वर्तमान आधुनिकता के प्रभाव के कारण चित्र परम्परा से जुडे़ क्रिया कलाप अब कम होते जा रहे है। आवष्यकता है कि इन कलारूप को सहेजा जाए जिससे यह कला पल्लवित पुष्पित होती रहे।