Human rights are such a right which is considered to be the prerogative of every person. Human rights are neither created by any government nor can be repealed. Specifically, the term human rights refer to rights that are considered universal to humanity, regardless of citizenship, residential status, ethnicity, gender, or other considerations. The phrase first gained widespread use in English due to the abolitionist movement, which appealed to the common humanity of slaves and freedmen. Human rights include cultural, economic, political rights, such as the right to life, liberty, education and equality before the law, association, faith, free speech, information, religion, movement and nationality. The declaration of these rights is not binding on any country, but they serve as a standard of concern for people and form the basis of many modern national constitutions. Among these human rights, my paper will focus on gender-based rights. Women section of the society. The main focus of the paper revolves around politics and legislation, the two agencies that ensure equal rights to the women of India through a historical perspective.
 During the 1940s and 1950s, Indian women proved that they could take advantage of every imaginable opportunity and long before women in countries like France, America or England could reach high positions. This paper will bring out how women in top offices in India definitely outpace England, America and France during this entire period.
 Abstract in Hindi Language:
 मानव अधिकार एक ऐसा अधिकार है जिसे हर व्यक्ति का विशेषाधिकार माना जाता है मानवाधिकार न तो किसी सरकार द्वारा बनायें गये है और न ही निरस्त किये जा सकते है। विशेष रूप से मानवाधिकार शब्द उन अधिकारों को सन्दर्भित करता है जिन्हे मानवता के लिए सार्वभौमिक माना जाता है, नागरिकता, निवास की स्थिति, जातियता, लिंग या अन्य विचारों की प्रवाह किए बिना। इस मुहावरें को सबसे पहले अंग्रेजी में उन्मूलनवादी आन्दोलन के कारण व्यापक रूप से उपयोग किया, जिसने दासों और स्वंतत्र व्यक्तियों की सामान्य मानवता को आकर्षित किया। मानवाधिकारों में सांस्कृतिक, आर्थिक, राजनितिक अधिकार शामिल है, जैस- जीवन का अधिकार, स्वंतत्रता, शिक्षा और कानून के समक्ष समानता, संघ विश्वास, मुक्त भाषण, सूचना, धर्म, आन्दोलन एवं राष्ट्रीयता का अधिकार। इन अधिकारों की घोषणा किसी भी देश के लिए बाध्यकारी नहीं है, लेकिन वे लोगों के लिए चिन्ता के मानक के रूप में काम करते है और कई आधुनिक राष्ट्रीय संविधान का आधार बनते है। इन मानवाधिकारों के बीच मेरा पेपर लिंग आधारित अधिकारों पर केन्द्रित होगा। समाज का महिला वर्ग। पेपर का मुख्य फोकस एतिहासिक परिप्रेक्ष्य के माध्यम से भारत की महिलाओं को समान अधिकार सुनिश्चत करने वाली दो एजेन्सियों राजनिति ओर विधान के इर्द-गिर्द घुमता है।
 1940 ओर 1950 के दशकांे के दौरान, भारतीय महिलाओं ने साबित कर दिया कि वे सभी बोधगम्य अवसरों का लाभ उठा सकती है और फ्रांस, अमेरिका या इग्लैंड जैसे देशों में महिलाओं के उच्च पद तक पहुचने से बहुत पहले। यह पेपर सामने लाएगा कि कैसे इस पूरी अवधि के दौरान भारत में शीर्ष कार्यालयों में महिलाऐं निश्चित रूप से इंग्लैंड, अमेरिका और फ्रांस से आगे निकल जाती है।
 
 Keywords: जीवन का अधिकार, स्वंतत्रता, शिक्षा, मुक्त भाषण, सूचना, धर्म
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