This gradual development of Shakuntala's character as a heroine is very natural. At the end of the play, the sacrifice of life was completed with the union of co-wife, good husband and good man. This is the ultimate ideal of human life. At the center of achieving this ultimate ideal, the character of ideal heroine Shakuntala is present everywhere. All the events have happened around this. In fact, the portrayal of Shakuntala is a picture of extremely joyful sweetness. Shakuntala's simplicity is mature, serious and permanent in crime, sorrow, knowledge, patience and forgiveness. We get a glimpse of her motherhood in the ashram of sage Marich. Where the entire love of her heart overflows for her son, thus Kalidas has given a bright and unique character to the world literature by portraying Shakuntala as the living embodiment of affection, cordiality, modesty, femininity, decency, compassion and motherhood. Shakuntala has been described in this world famous drama Abhigyan Shakuntalam by the great poet Kalidas. Abstract in Hindi Language: नायिका के रूप में शकुंतला के चरित्र का यह क्रमिक विकास परम स्वाभाविक है। नाटक के अंत में सपत्नी, सदपत्य तथा सत्पुमान् तीनों के सम्मिलन से जीवन यज्ञ पूर्ण हो गया। यही मानवजीवन का चरम आदर्श है। इस चरम आदर्श की प्राप्ति के केंद्र में आदर्श नायिका शकुंतला का ही चरित्र सर्वत्र विद्यमान है। इसी के इर्द-गिर्द सारी घटनाये घटी हैं। वस्तुतः शकुंतला का चित्रण अत्यंत हर्षित करने वाली मधुरिमा का चित्र है। शकुंतला की सरलता अपराध में, दुःख में, अभिज्ञता में, धैर्य में और क्षमा में परिपक्व है, गंभीर है और स्थायी है। मारीच ऋषि के आश्रम में हमें उसके मातृत्व की झलक मिलती है। जहां उस के हृदय का समग्र प्रेम पुत्र के लिए उमड़ पड़ता है इस प्रकार कालिदास ने शकुंतला को स्नेह, सौहार्द, लज्जा, नारीत्व, शालीनता और करूणा तथा मातृत्व की साक्षात् प्रतिमा के रूप में अंकित करके विश्व- साहित्य को एक पवन, समुज्ज्वल और अनुपम चरित्ररत्न प्रदान किया है। यह नाटक अभिज्ञान शाकुंतलम में महाकवि कालिदास के द्वारा यह विश्व प्रसिद्ध नाटक में शकुंतला का वर्णन किया गया है। Keywords: मानवजीवन, चरित्र, स्नेह, सौहार्द
Read full abstract