The social structure of the population is not only the pillar of economic development, but also an important basis of the social environment and social life of the population group. Under the social environment, the castes living in the community and their social values, customs, and social relations are included, on the basis of which the social environment of that community is determined. The presented research paper is completely based on primary data. Raigarh, Jashpur, Surguja and Balrampur districts are located in the north-eastern region of Chhattisgarh state. In the north-eastern region there is a majority of 'Hill Korwa' primitive tribal. The presented research paper is related to the social conditions of 'Hill Korwa' primitive tribe of north-eastern Chhattisgarh: A geographical study. The total population of 1218 Hill Korva families in the study area is 4701, in which 52.03 percent is male and 47.97 percent is female population, while 31.93 percent of the population (excluding 0-6 age group) is literate, which is a part of the surveyed Hill Korva primitive. Tribal indicates low educational level of families, lack of awareness towards education and economically backward society. Due to the lack of education and awareness among the primitive tribes, the practice of child marriage is prevalent even today, where marriages are arranged even before becoming an adult. The impact of gender discrimination has been more in the marital structure, which indicates the traditional thoughts and narrow mindedness in the society. It is clear from the analysis that in the surveyed village Kamarima (Jashpur district) of the study area, a higher positive social index of more than 10.01 was obtained. Therefore, it is necessary that an analytical study of the currently available social facilities should be done. Accordingly, on the basis of the analyzed study, a detailed planning outline should be prepared for the development of the area.
 Abstract in Hindi Language (शोध सारांश): 
 जनसंख्या की सामाजिक संरचना आर्थिक विकास का आधार स्तम्भ ही नहीं वरन् सामाजिक परिवेश एवं जनसंख्या समूह के सामाजिक जीवन का महत्वपूर्ण आधार भी है। सामाजिक परिवेश के अन्तर्गत् समुदाय में रहने वाले जातिय¨ं तथा उनके सामाजिक मूल्य, रीति-रिवाज, एवं सामाजिक सम्बन्ध¨ं क¨ सम्मिलित किया जाता है, जिसके आधार पर उस समुदाय के सामाजिक वातावरण का निर्धारण होता है। प्रस्तुत शोध पत्र पूर्णतरू प्राथमिक आंकड़ों पर आधारित है। छत्तीसगढ़ राज्य के उत्तरी-पूर्वी क्षेत्र्ा में रायगढ़, जशपुर, सरगुजा एवं बलरामपुर जिला स्थित है। उत्तरी-पूर्वी क्षेत्र्ा में ’पहाड़ी कोरवा’ आदिम जनजातीय की बहुलता है। प्रस्तुत शोध पत्र उत्तरी-पूर्वी छत्तीसगढ़ के ’पहाड़ी कोरवा’ आदिम जनजाति की सामाजिक दशाएँ: एक भौगोलिक अध्ययन से संबंधित है। अध्ययन क्षेत्र के पहाड़ी कोरवा जनजाति परिवारों में 1218 पहाड़ी कोरवा परिवारों की कुल जनसंख्या 4701 है, जिसमें 52.03 प्रतिशत् पुरूष एवं 47.97 प्रतिशत् महिला जनसंख्या है, वहीं (0-6 आयु वर्ग को छोड़कर) 31.93 प्रतिशत् जनसंख्या साक्षर है, जो सर्वेक्षित पहाड़ी कोरवा आदिम जनजाति परिवारों के निम्न शैक्षणिक स्तर, शिक्षा के प्रति जागरूकता की कमी एवं आर्थिक रूप से पिछड़े समाज को इंगित करता है। आदिम जनजाति में शिक्षा व जागरूकता की कमी के कारण बाल विवाह की प्रथा आज भी प्रचलित है, जहाँ वयस्क होने से पहले ही विवाह तय कर दिये जाते हैं। वैवाहिक संरचना में लिंग भेद का प्रभाव अधिक रहा है, जो समाज में परम्परागत् विचार एवं संकीर्ण मानसिकता को इंगित करता है। विश्लेषण से स्पष्ट है, कि अध्ययन क्षेत्र का सर्वेक्षित ग्राम कामरिमा (जशपुर जिला) में >10.01 से अधिक उच्च धनात्मक सामाजिक सूचकांक प्राप्त हुआ। अतः आवश्यक है, कि वर्तमान में उपलब्ध सामाजिक सुविधाओं का विश्लेषणात्मक अध्ययन किया जाय। तद्नुसार विश्लेषित अध्ययन के आधार पर क्षेत्र के विकास हेतु एक विस्तृत नियोजन की रूपरेखा तैयार किया जाय।
 Keywords (शब्द कुंजी) : परिवारिक संरचना, निर्भरता अनुपात, शैक्षणिक स्थिति, वैवाहिक स्थिति एवं सामाजिक स्तर।