Abstract
स्वामी विवेकानन्द ने अपने जीवन के अत्यंत अल्प समय में ही सारे विश्व को जो राह दिखाई संभवतः कोई अन्य कई सौ वर्षों तक जीवित रह कर भी न कर पाता। उनके कर्मयोग का संदेश कर्म को ईश्वर के रूप में देखने की प्रेरणा देता है। उनका कहना था कि आधुनिक काल में भारत का जो पतन हुआ है वह धर्म की अज्ञानता के कारण हुआ है। इसलिए जीवन में धर्म की अज्ञानता को दूर करना मनुष्य का परम लक्ष्य होना चाहिए। इस अज्ञानता को दूर करने के लिए हमें सही मार्गदर्शक शिक्षा की आवश्यकता है। जो प्रत्येक भ्रांतियों को दूर कर यथार्थ का ज्ञान कराये। इसी कारण से उन्होंने शिक्षा की राष्ट्र केन्द्रीयता के आह्वाहन के साथ राष्ट्र के युवा वर्ग उत्तिष्ठत जाग्रत प्राप्य वरान्निबोधत के साथ राष्ट्रीय चरित्र के निर्माण के लिये प्रेरित किया। स्वामी जी के इन विचारों से प्रेरित होकर एकनाथ जी ने सर्वप्रथम विवेकानन्द शिला स्मारक, कन्याकुमारी को प्रतिष्ठित कराया। उसके पश्चात् स्वामी जी के विचारों को मूर्त रूप देने के लिए विवेकानन्द केंद्र की स्थापना की। वर्तमान समय में विवेकानन्द केंद्र भारत के 24 राज्यों और 2 केन्द्रशासित प्रदेशों में विभिन्न कार्यक्रमों जैसे- शिक्षा, स्वास्थ्य, ग्रामीण एवं जनजातीय कल्याण के कार्यक्रम प्रकाशन, सामाजिक एवं सांस्कृतिक विकास सम्बन्धी कार्यों के द्वारा विकास के नित नए प्रतिमान स्थापित कर रहा है तथा स्वामी विवेकानन्द जी के कल्पनाओं को मूर्त रूप दे रहा है। इस लेख के माध्यम से शोधार्थी ने विवेकानन्द केंद्र की स्थापना का इतिहास, उद्देश्य एवं परियोजनाओं को सभी के सम्मुख प्रस्तुत करने का प्रयास किया है।
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